गरिमा-Moral Story in Hindi
गरिमा…… यही नाम था उसका, कॉलेज में मेरे साथ पढ़ती थी। बहुत घमंडी थी। चुस्त जींस पर स्लीवलेस टॉप…… उसको देखकर तो मेरे तन मन में आग लग जाती थी। हां….. एक बात मुझे उसकी बहुत पसंद थी.. उसके लंबे लंबे बाल।
एकदम मुंहफट थी … किसी को कभी भी.. कुछ भी.. बोल देती थी। एक दिन तो मैं कॉलेज आई और साइकिल स्टैंड में साइकिल खड़ा कर बाहर निकली तो क्या देखती हूं कि एक लड़के के साथ उसके हाथ में हाथ डाले खड़ी है और बत्तीसी दिखाकर उससे बतियाए जा रही है।
तनिक भी शर्म लिहाज नहीं है… सबके सामने यूं बेशर्म की तरह हाथ पकड़कर लड़का लोग से बात कर रही है। यही शब्द मेरी जुबान पर आए थे.. और मेरी इस बात का जवाब मेरे बगल में खड़ी प्रीति ने कुछ…।
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इस तरह दिया था…. हां खुद तो शर्म लिहाज है नहीं जब लड़का लोग कुछ गलत करेंगे तो दोस लड़कों को देगी…।अपनी गलती नहीं देखेगी। छोड़ यार ऐसी लड़कियों से तो दूर ही सही.,… कैरेक्टर तो कुछ है नहीं… और कॉलेज भी पढ़ने नहीं मां-बाप की आंखों में धूल झोंक कर लड़कों को हाथ में आती हैं।इतना कहकर अपना दुपट्टा सही करते हुए मैं प्रीति के साथ क्लास में चली गई।मन तो करता था मेरा कि मैं गरिमा की तरह रहूं.. उसके जैसे कपड़े पहनो.. बालों को खुला छोड़ कर का ले जाओ कभी-कभी लड़कों से भी बात करूं…।लेकिन यह सब सख्त मना था। चुपचाप पढ़ने जाओ….. बालों का जूड़ा बनाओ या छोटी कर लो… लड़के को आंख उठाकर भी मत देखो… ज्यादा दांत फाड़ कर मत हंसो… बचपन से सुनती इन सभी हिदायतों से मेरी इच्छाएं तो दब गई थी। परंतु, कॉलेज में गरिमा को देखकर तुरंत ही उसे चरित्रहीन लड़की घोषित कर दिया। सहेलियों के बीच में अक्सर उसकी बुराई करने लगी थी….. शायद मन ही मन जलती थी मैं उससे….।
मगर……. एक घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया। उस दिन शाम के वक्त हल्की बारिश हो रही थी। कॉलेज से घर जाना था और रास्ते में 2 किलोमीटर का सुनसान जंगल पड़ता था जिससे मैं और प्रीति आते जाते थे। इस रास्ते से आने जाने पर घर से कालेज की दूरी में 5 किलोमीटर की कमी आती थी। बदलो की वजह से आसमान काला पड़ गया था। हम दोनों जल्दी-जल्दी साइकिल के पेडल पर पैर मार रहे थे’। तभी हुआ कि हमारी साइकिल किसी रस्सी से लगी और मैं औंधे मुंह गिर पड़ी.. और प्रीति भी गिर पड़ी।
उठने की कोशिश कर रहे थे कि तभी साथ गुंडा टाइप के लड़के आ गए और हमारा हाथ पकड़ कर हमारे साथ बदतमीजी करने लगे। हम दोनों ने विरोध करना चाहा तो एक उनमें से एक लड़के ने मेरे हाथ पर चाकू से और दूसरे ने मेरे सर पर किसी वस्तु से प्रहार किया और मैं बेहोश हो गई।होश आया तो खुद को हॉस्पिटल के एक कमरे में पाया बगल में ही प्रीति का भी बेड था उसे भी चोटे आई थी किंतु उसे मुझसे पहले होश आ गया था।
होश में आते ही मैंने तुरंत प्रीति की ओर देखा और रोने लगी… सब कुछ खत्म हो गया… मैं… मेरी इज्जत.. सब खत्म…। कुछ नहीं हुआ… आह… हमें और हमारी इज्जत को कुछ नहीं हुआ….. दर्द में कराहते प्रीति ने कहा… इतनी देर में नर्स आ गई और हम से कुछ ना बोलने को कह कर…. डॉक्टर को खबर करने चली गई। उसके जाते ही मैंने प्रीति से पूछा…. कि क्या हुआ है, कैसे बच गए हम।
हमें गरिमा ने बचाया है अपनी जान देकर…… यह सुनते ही मेरे होश उड़ गए….. बूत बन गई मैं…. किंतु प्रीति ने आगे कहना जारी रखा…
कल जब हमें गुंडे मिले थे तभी गरिमा उधर से अपने मुंह बोले भाई के साथ गुजर रही थी जो उस दिन कॉलेज में दिखा था। मेरी आवाज सुनकर भी दोनों वहां आए… और हमें बचाने की कोशिश करने लगे… गुंडों ने उसके भाई को चाकू मार क्या कर दिया..
एक गुंडा तुम्हारे साथ दुष्कर्म करने की कोशिश करने लगा तो गरिमा ने पास ही पड़े पत्थर को उसके सिर पर मार दिया। यह देखकर एक गुंडे ने मेरा गला दबाने की कोशिश की और वह बाकी के गुंडे गरिमा को प्रताड़ित करने लगे.. उसकी जी के रोंगटे खड़े कर रही थी। पुलिस के सायरन की आवाज सुनाई दी। और उस गुंडे के हाथ पर जिसने मेरे हाथ और गले को पकड़ा था। मैंने दांतो से जोर से काटा और जंगल से बाहर की ओर भागने लगी उन्होंने मेरा पीछा किया…. किस्मत से पुलिस की नजर मुझ पर पड़ गई और वह लोग मेरे साथ जंगल में आने लगे… पुलिस भागने लगे कि वैसे एक ने भागने से पहले गरिमा के पेट में चाकू से कई वार कर दिया और वहीं पर उसकी मौत हो गई।
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प्रीती बोल कर चुप हो चुकी थी। पुलिस, डॉक्टर, हमारे फैमिली वाले सब आ गए थे। पर मुझे कुछ फर्क ही नहीं हो रहा था। इसके बाद जो कार्रवाई होनी थी हुई मुजरिम पुलिस की तत्परता से पकड़े गए और उन्हें सजा भी हो गई। इस बात को 13 साल बीत चुके हैं फिर भी मेरे मन में गरिमा के लिए अपराध बोध है ।
उसके बारे में जो मेरी गलत धारणा थी वह खत्म हो चुकी थी.. पर वह धारणा भी क्यों बनी मेरी… शायद वह मेरी गलती ना थी बचपन में भैया को बाल, सिपाही, बंदूक हमारी जाती तो मुझे कढ़ाई, चूल्हा, गुड्डा और गुड़िया। वह बाबा के साथ बाहर जाते.. सबसे बोलते बतियाते। दोस्तों के साथ खिलखिलाते। मुझे बाहर जाने की भी ज्यादा अनुमति नहीं थी तो बोलना बतिया ना तो दूर। कहते थे कि.. बहू बेटियों की आवाज घर की चौखट पार नहीं करनी चाहिए।
कुछ ऐसे ही परिवेश में परवरिश हुई थी मेरी कि किसी लड़की को अपने तरीके से जीते नहीं देख सकती थी…. और इसी वजह से कभी भी गरिमा को हंसते देख खिलखिलाते देख बर्दाश्त नहीं होता था मुझसे..।वह अच्छी लड़की थी पर मैंने उसके पहनावे, और स्टाइल से उसे चरित्रहीन समझ लिया। अगर कि सब कुछ ठीक होता तो उस दिन मैं और प्रीति ने तो सलवार कमीज ही पहनी थी।
इन सब यादों से आज भी मन में एक पाप सा लगता है और शायद उस पाप को कम कर सकूं इस कोशिश में अपनी बेटी का नाम भी गरिमा रखा है…. और हां…. उसे भी मैं गरिमा की तरह बनाऊंगी….. बेबाक…. खिलखिलाती…. ज़िद्दी…. गलत का विरोध करने वाली…… और सबसे जरूरी एक अच्छी लड़की..
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