
बहुत समय पहले हरिशंकर नाम का एक राजा था । उसके तीन पुत्र थे और अपने उन तीनों पुत्रों में से वे किसी एक पुत्र को राजगद्दी सौंपना चाहता था पर किसे ? राजा ने एक तरकीब निकाली और उसने तीनों पुत्रों को बुलाकर कहा और तुम्हारे सामने कोई अपराधी खड़ा हो तो तुम उसे क्या सजा दोगे ।
पहले राजकुमार ने कहा कि अपराधी को मौत की सजा दी जाए तो दूसरे ने कहा कि अपराधी को काल कोठरी में बंद कर दिया जाए तभी तीसरे राजकुमार की बारी थी तो उसने कहा कि पिताजी सबसे पहले यह देख लिया जाए कि उसने गलती की भी है या नहीं । इसके बाद उस राजकुमार ने एक कहानी सुनाई ।
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किस राज्य में एक राजा हुआ करता था । उसके पास एक सुंदर सा तोता था । पिता बड़ा बुद्धिमान था । उसकी मीठी वाणी और बुद्धिमत्ता की वजह से राजा उसे हमेशा बहुत खुश रखता था । एक दिन की बात है कि तोते ने राजा से कहा कि मैं अपने माता पिता के पास जाना चाहता हूं जाने के लिए राजा से विनती करने लगा तो राजा ने कहा कि ठीक है पर तुम्हें पांच दिन में वापस आना होगा । वह तोता जंगल की ओर उड़ चला अपने माता पिता से जंगल में मिला और खूब खुश हुआ । ठीक पांच दिनों के बाद जब वह वापस राजा के पास जा रहा था तब उसे एक सुंदर सा उपहार राजा के लिए ले जाने का सोचा वह राजा के लिए अमृत फल ले जाना चाहता था । जब अमृत फल के लिए पर्वत पर पहुँचा तब तक रात हो चुकी थी । उसने फल को तोड़ा और रात वहीं गुज़ारने का सोचा । वे सोच रहा था कि तभी एक साँप आया । उस फल को खाना शुरू कर दिया । सांप के जहर से वह फल भी विषाक्त हो चुका था । जब सुबह हुई तो तोता उड़कर राजा के पास पहुंच गया और कहा राजन मैं आपके लिए अमृत फल लेकर आया हूं ।
इस फल को खाने के बाद आप हमेशा के लिए जवान और अमर हो जाएंगे । तभी मंत्री ने कहा महाराज पहले फल देख भी लीजिए कि फल सही भी है या नहीं । राजा ने बात मानी और फल में से एक टुकड़ा कुत्ते को खिला दिया । कुत्ता तड़प तड़प कर मर गया । राजा बहुत क्रोधित हुआ और अपनी तलवार से तोते का सिर धड़ से अलग कर दिया । राजा ने फल बाहर फेंक दिया ।
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कुछ समय बाद उसी जगह पर एक पेड़ हुआ । राजा ने सख्त हिदायत दी कि कोई भी इस पेड़ का फल ना खाएं क्योंकि राजा को लगता था कि वह अमृत फल विषाक्त होते हैं और तोते ने कहीं फल खिला कर उसे मारने की कोशिश भी की थी । एक दिन एक बूढ़ा आदमी उसी पेड़ के नीचे विश्राम कर रहा था । उसने एक फल खाया और वह जवान हो गया क्योंकि उस वृक्ष पर उगे हुए फल विषाक्त नहीं थे ।
जब इस बात का पता राजा को चला से बहुत ही पछतावा हुआ उसे अपनी करनी पर लजित हुआ।
तीसरे राजकुमार के मुख से यह कहानी सुनकर राजा बहुत खुश हुआ और तीसरे राजकुमार को सही उत्तराधिकारी समझते हुए उसे ही अपना राज्य का राजा चुना । दोस्तो इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि किसी भी अपराधी को सजा देने से पहले यह देख लेना चाहिए कि उसकी गलती है भी या नहीं । कहीं भूलवश आप किसी निर्दोष को तो सजा देने नहीं जा रहे हैं ।
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धन्यवाद ।
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