……… मां बताओ ना आप क्या सोच रही हो, आपको पहले कभी तो इतना सोचते हुए नहीं देखा मैंने, आज ऐसा क्या हुआ जो आपके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं।
गुड़िया ने स्कूल से वापस आकर मां को चिंतामग्न देखकर एक ही सांस में यह सब कह दिया था। गुड़िया के इस सवाल से उसकी मां जानकी भी अवाक रह गई और वह बस इतना ही कह पाई, कुछ नहीं बस थोड़ी थकान ज्यादा हो गई थी आज, तभी तुमको ऐसा लग रहा होगा।
गुड़िया के बाल मन ने मां की बातों को सही जाना और उसने अपनी मां को गले लगाते हुए कहा, मैं भी अब आपके काम में हाथ बटाया करूंगी जिससे आप पर काम का बोझ नहीं होगा।
गुड़िया की इस बात पर उसकी मां ने कहा तुम अभी बस पढ़ाई में ध्यान दो, काम मैं देख लूंगी। मां बेटी कि इस वार्तालाप के बाद गुड़िया पढ़ाई करने में लग गई। पर उसकी मां वहीं बैठे बैठे भूतकाल में चली गई और पुरानी बातों को याद करने लगी। जानकी एक गरीब परिवार की इकलौती संतान थी। और उसके जन्म के कुछ सालों बाद ही उसकी मां का देहांत हो गया था, इससे अब वह और उसके पिता दो ही लोग घर में रह गए थे। उसके पिता को शराब पीने की बुरी आदत पड़ गई थी। और इसी लत ने 1 दिन उसकी भी जान ले ली। तब तक जानकी 18 बरस की हो गई थी। और मां के बाद पिता की भी मौत हो जाने के कारण मामा के यहां रहने लगी और उन्ही लोगों ने कुछ दिनों बाद उसका विवाह एक स्वजातीय है लड़के के साथ कर दिया।
इसे जानकी का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि उसका पति भी उसके पिता की तरह ही शराबी निकला, और इस वजह से उसका वैवाहिक जीवन का भी प्रभावित हुआ। शादी के 2 साल बाद ही उसका पति भी अत्यधिक शराब के सेवन की वजह से दुनिया में नहीं रहा। उस समय जानकी गर्भवती थी। और बाद में उसने एक लड़की को जन्म दिया।
अपने बेटे की मृत्यु और लड़की पैदा होने के बाद जानकी के ससुराल वालों ने उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। और अंततः एक दिन उन्होंने जानकी और उसकी बेटी को घर से निकाल दिया।
इस अप्रत्याशित संकट के बाद जानकी लगभग टूट सी गई और उसने आत्महत्या करने की ठान ली। पर जब उसे अपनी मासूम बेटी का ख्याल आया तो उसने अपना इरादा बदल दिया। और अब उसने अपनी बेटी के साथ नया जीवन शुरू करने का निश्चय कर गांव छोड़कर पास के शहर को अपना नया ठिकाना बना लिया।
शहर में जानकी रोजी मजदूरी कर अपना और गुड़िया का पालन पोषण करने लगी। हालांकि यहां भी उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। क्योंकि एक महिला को अकेले देख समाज के सफेदपोश भूखे भेड़िए किस हद तक गिर जाते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।
परंतु इन सब झंझट को झेलते हुए भी जानकी ने ना केवल गुड़िया की अच्छी परवरिश की बल्कि उसका दाखिला भी एक अच्छे स्कूल में करा दिया।
जानकी लोगों के घरों में घरेलू काम करते हुए दोनों का पेट भरने लगी। समय के साथ ही गुड़िया बड़ी होने लगी थी और यही अब जानकी के लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण बन गया था।
क्योंकि अब तक उसने तो जैसे तैसे करके अपने आप को और गुड़िया को भी लोगों की बुरी नजर से बचा लिया था। पर आखिर वह कब तक गुड़िया की रक्षा कर सकेगी। और कहीं वह भी उसकी तरह किसी शराबी के चंगुल में फंस गई तो उसका जीवन भी बर्बाद हो जाएगा।
जानकी इसी बात की चिंता में मग्न थी कि गुड़िया स्कूल से वापस आ गई। और उसने यह भाप लिया की मां किसी सोच में डूबी है, अपने मां से उसका कारण जानना चाहा, हालांकि जानकी ने उसे थकान का बहाना बनाकर असली बात छुपा ली थी। पर वह अंदर ही अंदर इस बात को लेकर चिंतित जरूर रहने लगी थी, पर जानकी ने अभी हार नहीं मानी थी। और इसी तरह मेहनत मजदूरी करते हुए दोनों मां बेटी जीवन यापन करने लगी।
कुछ दिनों के बाद गुड़िया ने इंटर पास कर लिया। गुड़िया ने अब घर में ही छोटे बच्चों को ट्यूशन देना भी शुरू कर दिया था और साथ ही कालेज में दाखिला भी ले लिया। इसी दौरान उनके जीवन में तब एक नया मोड़ आ गया जब उसके यहां पढ़ने आने वाले 1 बच्चे के दादाजी ने उसे अपने छोटे बेटे के लिए पसंद कर लिया, और उन्होंने जानकी से इस बारे में बात की।
जानकी को तो पहले विश्वास ही नहीं हुआ कि उसकी बेटी के लिए इतने बड़े घर से रिश्ता आया है. उसने जब यह बात गुड़िया को बताई तो उसने मां से कहा कि मेरा जीवन तो आप की ही देन है, मां आपका हर फैसला मुझे मंजूर है। इस तरह गुड़िया का विवाह राकेश नाम के युवक से हो गया और दोनों अच्छे से जीवन यापन करने लगे। गुड़िया के ससुराल वालों ने ना केवल उसे स्नातकोत्तर तक पढ़ाया, बल्कि उसकी मां का भी ख्याल रखते हुए उन्हें घर में ही टिफिन सेंटर चलाने हेतु सहयोग प्रदान किया। जिससे अब जानकी को दूसरों के यहां काम करने की जरूरत नहीं पड़ती थी।
इस तरह जानकी ने अपनी इच्छाशक्ति और मेहनत के बल पर यह साबित कर दिया कि कोई महिला अगर करने की ठान ले तो हर विरोध के बावजूद वह सफल जरूर हो सकती है।
नारी को दिए गए अबला के ख़िताब से मुक्त होने का मूल मंत्र देकर जानकी दूसरी महिलाओं के लिए आदर्श बन गई।
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