एक डिप्टी कलेक्टर की संघर्ष भरी कहानी, जो बिल्कुल पिछले गांव से शुरू होकर एमपीपीएससी तक साथ रही। बहुत सारे उतार-चढ़ाव के बाद भी उसने हार नहीं मानी और लक्ष्य प्राप्त करके दिखाया।
कहानी शुरू होती है मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव जमुआ जिसकी आबादी 15 सो के आसपास होगी, आदिवासी बहुल का बहुत ही पिछड़ा हुआ गांव है। वहां के लोगों को बुनियादी सुविधाओं से कोई लेना देना नहीं है। वही कुमार दंपति रहते थे। कुमार साहब ने बीए बीएड किसी तरह से संघर्ष करके कर लिया था। तो गांव से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते थे। और उनकी पत्नी उमा चौथी क्लास तक पढ़ी थी। आंगनबाड़ी में कार्यकर्ता थी। उनकी दो संताने थी। अजय विजय। विजय बड़े पुत्र थे अजय छोटे।
दोनों भाइयों की शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में हुई जो की सातवीं तक ही था। स्कूल में मात्र एक ही शिक्षक थे। कभी वह देर से आए या नहीं आए तो, स्कूल को खोलना साफ सफाई करना टाट पट्टी बिछाना और घंटी बजाना सारा काम विजय किया करता था।
क्योंकि वह और बच्चों की तुलना में पढ़ाई में अच्छा था। शिछक का पसंदीदा छात्र था। सातवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद विजय ने तहसील के सरकारी स्कूल में आठवीं में दाखिला लिया। गांव से तहसील दूर था । स्कूल के पास ही किराए का एक कमरा लेकर विजय ने आगे की पढ़ाई अकेले रहकर करें।
स्कूल पैदल जाना पड़ता था। लकड़ी जलाकर खाना बनाना पड़ता था। खुद सही सब्जी लाना, गेहूं पीस आना, साफ सफाई करना और पढ़ाई भी करना पड़ता था। कभी-कभी काम की अधिकता के कारण थक जाता था तो बिना खाए ही सो जाता था।
कभी चटनी रोटी ही खा कर गुजारा करना पड़ता था। विजय की पढ़ाई में लग्न थी तो उसने आठवीं कक्षा में टॉप किया और जिससे पिताजी ने खुश होकर नवी में उसका दाखिला उत्कृष्ट विद्यालय में करा दिया। जहां छात्रावास रहने को मिल गया तो संघर्ष में थोड़ी कमी आई।
खाने-पीने की चिंता नहीं रहती थी और अकेलापन भी नहीं लगता था। वहां पढ़ाई का तगड़ा कंपटीशन था। एक से बढ़कर एक तेज छात्र पढ़ते थे। गणित के फार्मूले जुबानी याद थे, फिजिक्स की रिएक्शन तो रटती रखी थी। यहां विजय अपने आपको थोड़ा कमजोर महसूस करने लगा। जिसका परिणाम यह हुआ कि वह दसवीं में फेल हो गया।
शिक्षकों ने राय दी कि जो विषय कठिन लग रहे हैं उनकी अलग से ट्यूशन ले ले परंतु पिताजी की आय इतनी नहीं थी कि उन्हें दो हजार ही मिलते थे। जिसमें छोटे भाई की भी पढ़ाई का खर्च था। विजय ने खुद से प्रतिज्ञा की कि इस बार में किसी को भी कहने का मौका नहीं दूंगा।
2 महीने की गर्मी की छुट्टियों में घर ना जाकर छात्रावास में ही रह कर उसने खूब मेहनत की। उसके कमरे में 2 पंखे लगे थे। तीन पंखों की जगह थी। जहां पंखा नहीं था उस कड़े में उसने रस्सी बांधी थी। उसी के नीचे अपनी टेबल कुर्सी लगाकर पढ़ने बैठता था। जब नींद आने लगती थी तब रस्सी से जो लटक रही थी उसमे बालो को बांध देता और पाठ याद करने बैठ जाता था।
जब झपकी लेते समय बाल खींचते तो दर्द होता और नींद उड़ जाती। इस तरह से उसने सारे मुश्किल विषय तैयार कर लिए थे। दसवीं की परीक्षा दोबारा दी उसने जिले में टॉप किया पहला नंबर आया। माता-पिता शिक्षक सभी उसे बहुत खुश हुए। विजय का हौसला भी इतना बढ़ गया कि वह छोटे-छोटे बच्चों को गणित ज्ञान की ट्यूशन पढ़ाने लगा। इससे उसे कुछ आमदनी भी होने लगी। विजय ने 12 मई में भी जिले में प्रथम स्थान लाकर अपना वर्चस्व कायम कर लिया था। साथ ही एक फोटोकॉपी की दुकान पर काम भी करने लगा।
विजय का P.E.T. पास करने के साथ ग्रीन कार्ड धारी होने के कारण जबलपुर सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में चयन हो गया। तब उसकी ट्यूशन और फोटोकॉपी की नौकरी दोनों ही बंद हो गए। माता-पिता कैसे भी उसका खर्च उठा रहे थे प्रथम वर्ष का परीक्षा परिणाम आया तो वह सन्न रह गया। चार विषयों में फेल था।उसने दोबारा तैयारी करी खर्च निकालने के लिए उसने फिर से ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया और खुद भी पढ़ाई की।
पास होने के बाद कोई बड़ा काम नहीं मिला तो वह इंदौर के प्रतिष्ठित पेट्रोल पंप पर सुपरवाइजर बन गया। इस काम में उसको ज्यादा लाभ नहीं था और काम भी उसके मन का नहीं था। दोबारा जबलपुर में ट्यूशन पढ़ाने लगा। माता-पिता बहुत परेशान थे ताने भी मारते थे कि यही ट्यूशन पढ़ाने के लिए तुम को बाहर भेजा था क्या। इसी बीच व्यापम के तहत वनरक्षक भर्ती परीक्षा दी उस में उत्तीर्ण हो गया। जिले में ही उसकी पोस्टिंग हो गई फॉरेस्ट गार्ड के पद पर। यह नौकरी भी उसे रास नहीं आई क्योंकि इसमें जंगल जंगल भटकना पड़ता था। तभी जबलपुर में आयुध भंडार में भर्ती वनरक्षक पद से इस्तीफा दे दिया या काम भी उसे अच्छा नहीं लग रहा था।
उसके एक मित्र ने उसे सलाह दी कि तू एमपी एस सी की तैयारी कर। पूरी ताकत से विजय इस परीक्षा की तैयारी में जुट गया नौकरी के साथ ट्यूशन भी जारी थी। व्यस्तता के चलते गांव जाना आना और दोस्तों से मिलना जुलना सब बंद हो गया था। एमपीपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली लेकिन मुख्य परीक्षा में असफल हो गया।
मां पिताजी बहुत नाराज हुए बातचीत भी बंद कर दी। विजय ने हार नहीं मानी उसने दोबारा तैयारी करें। इस बार साक्षात्कार तक पहुंच गया परंतु किस्मत ने अंतिम चरण में साथ नहीं दिया।
विजय ने इस बार तय कर लिया था कि इस बार बाजी में ही मारूंगा संघर्ष का तनाव बहुत ज्यादा था। उस पर से परिवार का बड़ा बेटा होने के नाते सबकी उम्मीदें भी उससे जुड़ी थी। इस बार बाजी मारना तो दूर हुआ प्रारंभिक परीक्षा भी पास नहीं कर पाया। अब वह टूट गया था उसे लगने लगा था कि अब वह कुछ नहीं कर पाएगा उसे यूं ही ट्यूशन से ही काम चलाना पड़ेगा।
एक दिन पढ़ाते समय एक बच्चे को बार बार एक ही सवाल समझा कर थक गया था। उसने बच्चे को दो चांटे लगा दिए, कि तुमको कितनी देर से समझा रहा हूं इतनी सी बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही है। तभी उसे अपना फेल होना याद आया ट्यूशन पढ़ाना छोड़ दिया और चौथी बार एमपीपीएससी की तैयारी में जुट गया। इसी बीच उसके मन में बहुत सारे नेगेटिव विचार आने लगे। लोग उसकी हंसी उड़ाने लगे थे। वह बहुत निराश हो चुका था। इस बार परीक्षा पास की उसने अपनी सारी गलतियां ढूंढकर परिवार वालों ने भी उसका साथ दिया सबसे बड़ी बात कि इस बार उसने अपने आप को समर्पित कर दिया था।
उसे लगने लगा था कि इस बार तो मेरी ही विजय होगी जैसा कि उसका नाम था विजय तो सचमुच में एमपीपीएससी में डिप्टी कलेक्टर के पद यह उसका चयन हो गया वह विजई हुआ। इसीलिए कहा जाता है कि हार के आगे जीत है। मेहनत, ईमानदारी से किया गया प्रयास कभी असफल नहीं होता। गर्व से कहता था कि मैं जमुआ गांव का शुद्ध देहाती डिप्टी कलेक्टर बन गया। वादा किया कि मैं अपने गांव को बुनियादी सुविधाएं दिला कर ही रहूंगा। गांव को शहर जैसा बना दूंगा।
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